भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो ख़ुश हो के मुझ से ख़फा हो गया / जगत मोहन लाल 'रवाँ'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:52, 14 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगत मोहन लाल 'रवाँ' }} {{KKCatGhazal}} <poem> वो ख़...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो ख़ुश हो के मुझ से ख़फा हो गया
मुझे क्या उम्मीदें थी क्या हो गया

नवेद-ए-शफ़ा चारा-साज़ों को दो
मरज़ अब मेरा ला-दवा हो गया

किसी ग़ैर से क्या तवक़्क़ो के जब
मेरा दिल ही दुश्मन मेरा हो गया

कहाँ से कहाँ लाई क़िस्मत मेरी
किस आफ़त में मैं मुब्तला हो गया

मैं यकजा ही करता था अपने हवास
के उन से मेरा सामना हो गया

‘रवाँ’ तू कहाँ और कहाँ दर्द-ए-इश्क़
तुझे क्या ये मर्द-ए-ख़ुदा हो गया