भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो जो मुह फेर कर गुजर जाए / मजरूह सुल्तानपुरी

Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:30, 15 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मजरूह सुल्तानपुरी }} Category:ग़ज़ल<poem> वो जो मुह फेर …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो जो मुह फेर कर गुजर जाए
हश्र का भी नशा उतर जाए

अब तो ले ले जिन्दगी यारब
क्यों ये तोहमत भी अपने सर जाए

आज उठी इस तरह निगाहें करम
जैसे शबनम से फूल भर जाए

अजनबी रात अजनबी दुनिया
तेरा मजरूह अब किधर जाये