भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो ठहरता क्या कि गुज़रा तक नहीं जिसके लिए / फ़राज़
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:53, 9 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category:गज़ल वो ठहरता क्या कि गुज़रा तक नही...)
वो ठहरता क्या कि गुज़रा तक नहीं जिसके लिए
घर तो घर हर रास्ता आरास्ता मैंने किया।
ये दिल जो तुझको ब ज़ाहिर भुला चुका भी है
कभी-कभी तेरे बारे में सोचता भी है।
सुना है बोलें तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं
ये कौन है सरे साहिल कि डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछल के देखते हैं
उसकी वो जाने उसे पासे-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते।
होते रहे दिल लम्हा-ब-लम्हा तहो-बाला
वो ज़ीना-ब-जीना बड़े आराम से उतरे