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वो तो जब भी खत लिखता है / श्याम सखा 'श्याम'

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वो तो जब भी खत लिखता है
उल्फ़त ही उल्फ़त लिखता है
 
मौसम फूलों के दामन पर
ख़ुशबू वाले ख़त लिखता है
 
है कैसा दस्तूर शहर का
हर कोई नफ़रत लिखता है
 
बादल का ख़त पढ़कर देखो
छप्पर की आफ़त लिखता है
 
अख़बारों से है डर लगता
हर पन्ना दहशत लगता है
 
रास नहीं आता आईना
वो सबकी फ़ितरत लिखता है
 
मन हरदम अपनी तख़्ती पर
मिलने की हसरत लिखता है
 
उसकी किस्मत किसने लिक्खी
जो सबकी क़िस्मत लिखता है
 
”श्याम’अपने हर अफ़साने में
बस, उसकी बाबत लिखता है