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वो दिन लौटा भी लाते / सुरेश चंद्रा

वो दिन
लौटा भी लाते

मीठे लफ़्ज़ों मे गूँथी कहानियाँ
जब, निगल जाती थी आँखें

शहज़ादों परियों की कहानियाँ
स्वप्निल आसमान
लोबान सी महकती ज़मी
कौंधते जुगनू
एक सच गढ़ती कहानियाँ
जिनमे हक़ीक़त की बू तक नहीं थी

आँखों ने फिर पढ़ी
उम्र की दहलीज़ पर
कई-कई आँखें
इन दिनों
आँखें आँखों से कतराने लगी हैं
आँखें उगल देना चाहती हैं एक समंदर
क़िस्से, कहानियाँ, लफ्ज़ सारे

वो दिन
लौटा भी लाते.