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वो दोस्त ही दिखे यों तो जब सामने रहे / दरवेश भारती

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वो दोस्त ही दिखे यों तो जब सामने रहे
लेकिन वो दिल ही दिल में परस्पर ठने रहे

जब इस जहां को ठीक-से देखा तो ये लगा
चेहरों की भीड़ का यों ही हिस्सा बने रहे

हिम्मत तो देखें आप ज़रा इन दरख़्तों की
थी भुरभुरी ज़मीन मगर ये तने रहे

वो पाको-साफ़ खुद को बताने लगा है आज
ताउम्र जिसके हाथ लहू से सने रहे

जिनके हवाले की थी हिफ़ाज़त की बागडोर
इन्सानियत के क़त्ल में वो सरग़ने रहे

हालत रही अवाम की क्या लोकतन्त्र में
दुष्यन्त की ज़बान में सब झुनझने रहे

आया जब इम्तिहान का मौक़ा तो चुपरहा
'दरवेश' यों तो रिश्ते हमारे घने रहे