वो बेहिसाब है तन्हा तमाम लोगों में
जो आदमी है सरापा तमाम लोगों में
तू झूठ सच की तरह बोलने में माहिर है
अज़ीम है तेरा रुतबा तमाम लोगों में
ख़ुदी की बात लबों पर ज़रा-सी क्या आई
मैं घिर गया हूँ अकेला तमाम लोगों में
मिलो तपाक से नीयत करे करे न करे
कमाल है ये सलीका तमाम लोगों में
ये क्या मुकामे-जहाँ है कि अब गरज़ के सिवा
बचा नहीं कोई रिश्ता तमाम लोगों में
इक आरज़ू थी जो शायद कभी न हो पूरी
हबीब-सा कोई मिलता तमाम लोगों में