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वो मेरे जिस्म के अन्दर है ज़लज़लों की तरह / ज्ञान प्रकाश विवेक

वो मेरे जिस्म के अन्दर है ज़लज़लों की तरह
मैं बदहवास-सा फिरता हूँ पागलों की तरह

तू आसमान में यूँ छोड़ के न जा मुझको
पते बदलते रहूँगा मैं बादलों की तरह

उठा सके तो ज़रा हाथ पे उठा मुझको
कि मैं तो रहता हूँ पानी पे बादलों की तरह

अगर ये शहरे-मुहब्बत है तो बता मुझको
हमारे बीच है ये कौन फ़ासलों की तरह

फ़क़ीर होते हैं बेखौफ़, तन्हा रहते हैं,
ज़मानासाज़ ही चलते है क़ाफ़िलों की तरह