Last modified on 29 सितम्बर 2010, at 17:54

व्यतीत / वंशी माहेश्वरी

समय
घड़ी की तरह
शायद दीवार में

दिनारम्भ की फड़फड़ाती चेतना के साथ सूर्य
रोज़ाना
रोज़ाना ही उतरता जाता रहा है

कितने समय से
पता नहीं

कितने समय से
ये भी पता नहीं
कौन व्यतीत हो रहा है
समय या मनुष्य !