भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्यवहार आदमी के कतना बदल रहल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:39, 30 मार्च 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

व्यवहार आदमी के कतना बदल रहल बा
सब लोग मन के मालिक, सब लोग बेकहल बा

मरजाद बान्ह टूटल, सब नेह-नात छूटल
भगवान अब बँचावस, कइसन हवा बहल बा

मेटल गइल गरीबे, मेटल कहाँ गरीबी
चीत्कार झोपड़ी के सुन हँस रहल महल बा

घर में अनाज नइखे, कहवाँ मिली जलावन
चूअत पलानी सड़ के खर के बिना गिरल बा

कमजोर के लुगाई भउजाई गाँव भर के
बहुते विचार कर के, तब बात ई कहल बा

गाँवन का सादगी के चर्चा बहुत रहल हऽ
बाँचल कहाँ जहाँ अब नाहीं प्रपंच-छल बा