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व्याकुल मेरे प्राण / श्वेता राय

कोकिल के कंठो में बसती, मधुर प्रीत की तान
प्रिय! व्याकुल मेरे प्राण

रात है पत्थर सपने चंदन
श्वासों का जो करते अर्चन
सुधियाँ प्रिय की रख जाती हैं सिरहाने मुस्कान
प्रिय! व्याकुल मेरे प्राण

प्रीत है पिंजर तन मन बन्दी
हरपल महके बन मकरंदी
अंधियारे पथ पर लाती ये किरणों का विहान
प्रिय! व्याकुल मेरे प्राण

प्रिये देव औ अर्घ्य है जीवन
भावों को करते हैं अर्पण
पंख बिना मन पा जाता है अंबर की उड़ान
प्रिय! व्याकुल मेरे प्राण