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शंकरलाल द्विवेदी / परिचय

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अपने सृजन-काल में गणतंत्र-दिवस के अवसर पर, लाल-किले की प्राचीर से आयोजित होने वाले कवि-सम्मेलनों में उनका स्वर अनेक बार पांचजन्य के उद्घोष की तरह प्रस्फुटित हुआ है। उनकी ओजमयी वाणी से प्रभावित हो कर राष्ट्रकवि [[सोहनलाल द्विवेदी]] ने उन्हें 'आधुनिक दिनकर' की संज्ञा से संबोधित किया। ब्रज-भाषा काव्य में में वे 'लांगुरिया-गीत' परम्परा के अमर-गायक के रूप में विख्यात हैं। आकाशवाणी-दिल्ली तथा आकाशवाणी-मथुरा से 'काव्य-सुधा' तथा 'ब्रज-माधुरी' कार्यक्रमों के अंतर्गत उनके काव्य का अनेक बार प्रसारण हुआ है।
समकालीन समाचार-पत्रों, साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अनेक काव्य-संकलनों में '''{'अमर उजाला', 'नव-प्रभात', 'नवलोक-टाइम्स', 'सैनिक', 'नागरिक', 'अमर-जगत' (समाचार-पत्र), 'युवक', स्वदेश', 'साहित्यालोक', 'स्वराज्य' (साप्ताहिक), 'सृजन' (त्रैमासिक) इत्यादि}''' समय-समय पर उनके काव्य का संकलन व प्रकाशन होता रहता था। पद्मश्री आचार्य क्षेमचन्द्र 'सुमन' [https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%87%E0%A4%AE_%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6_%27%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%A8%27] ने अपने महत्वपूर्ण ग्रन्थ ''''दिवंगत हिंदी साहित्य-सेवी कोष'''' के तृतीय संस्करण हेतु श्री द्विवेदी की धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा द्विवेदी से उनके सम्पूर्ण परिचय का ब्यौरा मँगवाया था किन्तु आचार्यवर की श्वास-रोग के चलते अस्वस्थता एवं सन १९९३ में लम्बी बीमारी के निधन के पश्चात् इस संस्करण का प्रकाशन न हो सका।
श्री द्विवेदी के कृतित्व में जीवन का स्पंदन तथा द्वंद्व सम-भाव से उपस्थित है। यह अक्षर-सम्पदा सचमुच अक्षर-सम्पदा ही है। श्री द्विवेदी में गहन-सौन्दर्य-बोध विद्यमान था, यह उनके कृतित्व में भी परिलक्षित होता है। नारी-सौन्दर्य के प्रति उनके चिन्तन में दिव्य-चेतना दिखाई देती है। वे अनुरागी हैं, तो वैरागी भी हैं। उनके काव्य में ग्रामीण परिवेश की मानसिक संरचना बिलकुल संतों की वाणी के समान सुनाई पड़ती है। राजनैतिक मतवादों के प्रति बंधन-मुक्त रहते हुए भी वे सामयिक राजनीति के प्रति काव्यात्मक स्तर पर संवेदनशील जान पड़ते हैं।
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