Last modified on 11 फ़रवरी 2011, at 11:35

शकट द्वीप / दिनेश कुमार शुक्ल

घुसते ही गॉंव में
एक टुटही बैलगाड़ी खड़ी मिलती
गॉंव के साथ इस क़दर नत्थी थी वह
कि बहुत दिनों बाद
गॉंव की ग़रीबी पर जब
इमर्तियासेन का व्याख्यान सुनने जाना पड़ा
तो सबसे आगे आकर अड़ गयी यही टुटही गाड़ी
और लगातार पूरे भाषण भर इस क़दर छायी रही
इस क़दर कि दृश्य जगत से श्रव्य जगत तक सिर्फ़ उसी की
उपस्थिति थी

बैलगाड़ी में कभी कोई बदलाव
समय के साथ नहीं आया
यहाँ तक कि उसके आस-पास की हर चीज़
अपरिवर्तित चली आ रही थी जस-की-तस
समय की उॅंगलियाँ यहाँ तक
आते-आते जैसे झुलस जाती थीं
एक द्वीप में खड़ी थी
टुटही बैलगाड़ी
और आस-पास हहर-हहर बहता रहता
समय का नद

कुछ घरों की भीत उठती चली जाती
कोट-पर-कोट
कुछ की नींव का भी मिट जाता नामोनिशान
पैर रपटते ही कालप्रवाह में
डूबते बहे चले जाते थे कितने युग
और कुछ नये आ लगते उस घाट
घिसट कर पहुँच ही जाते किनारे तक

लेकिन वह शकट द्वीप
पाँच गज का यह प्रसार अजर अक्षय अपरिवर्तनीय
कुछ-कुछ अमरत्व-सा कुछ-कुछ अनस्तित्व-सा,
बैलगाड़ी के सहारे उगी अनाम-सी घास
रूसाह अकौड़े और धतूरे के भीट
न गर्मी में सूखते न फैलते बरसात में,
ख़ुद बैलगाड़ी का अस्थिपंजर पहिए जुआँ
लीक-लीक चलने के निशान पहियों पर
काल की भॅंवर में समानान्तर संसार का एक इलाक़ा
झॉंकता हुआ हमारी दुनिया में
अपने अलग यथार्थ के साथ

एक सुबह लोगों ने देखा-
उन लोगों ने जो अस्सी नब्बे सालों से
एक वही बाना गाड़ी का देख रहे थे,
एक या ही रूप
कि गाड़ी तनी खड़ी थी
अपने टूटे ढॉंचे में भी वह आक्रामक-सी लगती थी
पहिए चलकर लुढ़क गये थे दस गज पीछे
और लुढ़कती गाड़ी खड़ी उलंग हो गयी
जैसे कोई तोप खड़ी हो तनी

क़िस्सा कोताह ये कि इधर
गॉंव पंचायत के चुनाव हुए थे
और उनमें तराजू, चम्मच, लोटा वग़ैरह के साथ
इस बार बैलगाड़ी भी एक चुनाव चिह्न थी
और यह चुनाव चिह्न मिला उसे
जो हर बार जीतता आया था अपनी लाठी के बूते
चुनाव के एक रात पहले अचानक
बैलगाड़ी के आस-पास का कवच
अदृश्य शीशे-सा चटक कर टूट गया,
समय का प्रवाह भरभरा कर घुस गया
उस ‘शकट द्वीप’ में

और विजयी के दुर्दान्त आतंक के बावजूद
गाड़ी डरी नहीं
बल्कि उसने यह किया
कि लगभग अश्लील मुद्रा में
उलंग होकर तन कर खड़ी हो गयी
और हरा दिया अपनी इस मुद्रा से
उसे जो हमेशा जीतता आया था लाठी के बल पर
ऐसा प्रतिकार था यह
जिसका ठीक-ठीक पड़ा था वार !