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शकुन्तला / अध्याय 1 / भाग 1 / दामोदर लालदास

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मातुक अंकमें बैसल बाल-गणेश चिबाबथि दिव्य मिठाई ।
ताहि समय जननी लग ठाढ़ षडानन देखल खाइत भाई।।
मांगल मोदक लय गज-आननसँ ‘उगला’ झट देल देखाई।
से लखि मातु-पिता मुसुकाथि तथा मुसुकाथि गणेशहुँ भाई।।

मंगल से मुसकान महेश, गणेश, षड़ानन और भवानिक।
मंगल देधु बना रचना मम, दै प्रतिभा कृपया मधु-वानिक।।
काव्यकलाक विलक्षणता, मधुता, रसता सभ हो रस-खानिक।
जे पढि़ मोद-विनोद बढै़ कवि, कोविद, दिव्यकला-रस-ज्ञानिक।।