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शक्ती के लागत ही लखन / चतुर्भुज पाठक 'कञ्ज'

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शक्ती के लागत ही लखन भू माँहि गिरे
देख रघुबीर बीर धीर न धरात है
जाय कपि दूत गढ़ लंक सों सुशेन लायौ
पूछत ही बताई संजीवन बिख्यात है
कहै कवि 'कंज' रवि उदै न होय जौ लों
राम कहै तौ लों मोहि पल जुग जात है
धाय कपि द्रोण सों उठाय गिरि भागौ, ता पै
रोवत सियार जात नभ में दिखात है