शत में इंजोरिया में फूल झरलोॅ गेलै आ,
रात भर दुःख दर्द भूमि बाँटनें गेलै।
रातभर घैरको के खेल खेललै कवि आ,
रातभर अंधड़ोॅ में खेल मेटलोॅ गेलै।
रातभर पलकोॅ पे याद बिरही केॅ रहै
रातभर एक लोक मिटलोॅ होलोॅ गेलै।
रातभर विधि के विधान भोगलोॅ गेलै आ
रातभर सर्द साँस काँपलोॅ होलोॅ गेलै॥