भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्दपीडा / विप्लव ढकाल

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:20, 18 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विप्लव ढकाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



शब्दको भीरबाट लडिदिन्छु
कि शब्दकै अग्निकुण्डमा हाम्फाल्छु !
कि शब्दको तीरले घोचिन्छु
कि शब्दकै तुइनमा झुण्डिएर
तर्छु दुःखको कर्णाली !
…..
शब्दद्वारा कुटिएर मर्छु
कि शब्दद्वारै टोकिन्छु, लुछिन्छु, चुँडिन्छु !
कि शब्दकै तरबारमा
रेटिदिन्छु विचारको गला !
…..
कविता जन्मिदैन भने के भो त ?
कि म यो निर्मम शब्दब्रह्मको वध गर्छु
कि शब्दको कालकूट पिएर
शब्दकै समुद्रमा
सुतिदिन्छु चिरकालसम्म … !!
…..