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शब्दावली में अटका हुआ कोई शब्द / अशोक कुमार

पानी बदलता था बानी बदलती थी
और शब्दावली भी

मेरी जमीन में अलग-अलग भाषा लिये हुये लोग थे
जो मुँह में अलग-अलग जुबान रखते थे

जुबान कैचियाँ बन कपडों के अलग-अलग प्रदेश में चलती थीं
और कोई लम्बी थकाऊ यात्रा के बारे में बेफिक्र हो जिक्र करता

कोई सोने के चढ़ते हुये भावों की चर्चा अनमने से करता
और फिर उसके गिरते हुए समय में कुछ गहरी सांसे भरता

मैंने अक्सर पाया था कि जिन्हें बड़ी गाड़ियों की अच्छी जानकारी थी
उन्हें रफ़्तार का गम्भीर तकनीकी ज्ञान था
और मातृभाषा की शब्दावलियों में अंटकते हुये ऐसे लोग
कोई विदेशी भाषा में जलेबियों की दुरूह लड़ियाँ बना जाते

मुझे आश्चर्य था कि किताबों के फड़फड़ाते पन्नों में
कहीं कोई अनुचित शब्द नहीं था
जो अनुचित साधनों की जोशोखरोश वकालत करता था
और इसके बावजूद दुनिया विपर्यित और विभाजित थी

मैं व्यथित था कि साध्यों की नैतिक व्याख्या करते हुए
साधनों के अनैतिक इस्तेमाल का इल्जाम उन्हीं लोगों पर था
जिनकी शब्दावलियों में भाषा विदेशी जमीन पर रफ़्ता-रफ़्ता सरपट सरकती नज़र आती थी

मैं अचम्भित था यह देख कर कि
शब्दावलियों में अंटके हुए जो लोग थे
उन्होंने कोई गम्भीर वा सरल किताबें नहीं पढ़ी थीं
और कहीं कोई सीमा का अतिक्रमण नहीं कर रहे थे

उनके लिए दुनिया किताबों की कब्र पर उगे हुए कुकुरमुत्ते की कोई पौध थी।

प्रयोगधर्मिता

प्रयोग करते रहे कि पानी हवा हो जाय
प्रयोग करते रहे कि हवा पानी हो जाय

प्रयोग करते रहे कि पौधों पर आ जाय खुद ब खुद धूप
और मिट्टी के लोंदे में इंसानी महक आ जाय

प्रयोग यह कि झूठ को अपने हक में बना लें हम सच
और फिर कोई जमीनी हकीकत आसमानी हो जाय।