भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द तुम..? / विजेंद्र एस विज

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:18, 7 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेंद्र एस विज |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शब्द तुम
कहाँ चले गए?
पता ही नहीं चला…
गायब हो गए
कहाँ,
आधी रात के बाद

कौन से दरवाज़े, जाने
खुलते हैं, तुम्हारे लिए
और,
किस घर में जाने
अब तुम दस्तक देते हो
तरह-तरह के स्वांग
रचाने लगे हो
कब तक यूँ ही, / छलते रहोगे मुझे तुम

अब तो मैं भी,
तुम्हारी उम्र का हो गया हूँ .