भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द सभी पथराए / राजेन्द्र गौतम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत कठिन सम्वाद समय से
शब्द सभी पथराए

हम ने शब्द लिखा था -- 'रिश्ते'
अर्थ हुआ बाज़ार
'कविता' के माने ख़बरें हैं
'सम्वेदन' व्यापार

भटकन की उँगली थामे हम
विश्वग्राम तक आए

चोर-सन्त के रामायण के
अपने-अपने 'पाठ'
तुलसी-वन को फूँक रहा है
एक विखण्डित काठ

नायक के फन्दा डाले
अधिनायक मुसकाए

ऐसा जादू सिर चढ़ बोला
गूँगा अब इतिहास
दाँत तले उँगली दाबे हैं
रत्नाकर या व्यास

भगवानों ने दरवाज़े पर
विज्ञापन लटकाए