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शब-ए-उम्मीद है, सीने में दिल मचलता है / सरवर आलम राज 'सरवर'

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शब-ए-उम्मीद है, सीने में दिल मचलता है
हमारी शाम-ए-सुखन का, चिराग़ जलता है

न आज का है भरोसा, न ही ख़बर कल की
ज़मान रोज़, नयी करवटें बदलता है

अज़ीब चीज़ है दिल का मु,आमला यारों
संभालो लाख मगर, यह कहाँ संभलता है!

न तेरी दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी अच्छी
न जाने कैसे, तिरा कारोबार चलता है!

सुना है आज, वहाँ मेरा नाम आया था
उम्मीद जाग उठी, दिल में शौक़ पलता है

वोही है शाम-ए-जुदाई, वोही है दिल मेरा
करूँ तो क्या करूँ, कब आया वक़्त टलता है!

मिलेगा क्या तुम्हें, यूँ मेरा दिल जलाने से
भला सता के, ग़रीबों को कोई फलता है?

इसी का नाम कहीं दर्द-ए-आशिक़ी तो नहीं?
लगे है यूँ कोई रह-रह के दिल मसलता है

न दिल-शिकस्त हो बज़म-ए-सुखन से तू ‘सरवर’
नया चिराग़ पुराने दीए से जलता है!