Last modified on 12 अप्रैल 2021, at 15:26

शरद गेलै रस्ता भुलाय / कुमार संभव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 12 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार संभव |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शरद गेलै रस्ता भुलाय

बीजू बन में कागा बोलै
घर-ऐंगना जी हमरो डोलै,
काग के भाग सराहौं हम्में
अपना जानोॅ के वारौं हम्में,
ई शीत में आबी केॅ हमरोॅ
देलकै प्रीत जगाय,
शरद गेलै रस्ता भुलाय।

फूलोॅ में हाँसै छै
हाँसै कुहासा में,
हाँसी-हाँसी बोलै छै
आशा-निराशा में,
धूपोॅ में शरदें आबी केॅ
दुख सब देलकै विसराय,
शरद गेलै रस्ता भुलाय।

बगीचा में साँझें पड़ोकी बोललै
सुनथै रस्ता याद आबी गेलै,
कुनमुन ज़िया सें सीतें ठिठुरली
सोचै शरद पिया कैन्हें न ऐलै,
भगजोगनी भुकभुक आबी केॅ
शरदोॅ केॅ देलकै रस्ता देखाय,
शरद गेलै रस्ता भुलाय।