Last modified on 28 मई 2016, at 11:26

शराबी की सूक्तियाँ-41-50 / कृष्ण कल्पित

इकतालीस

धर्म अगर अफ़ीम है
तो विधर्म है शराब।

बयालीस

समरसता कहाँ होगी
शराबघर के अलावा?

शराबी के अलावा
कौन होगा सच्चा धर्मनिरपेक्ष।

तैंतालीस

शराब ने मिटा दिए
राजशाही, रजवाड़े और सामन्त

शराब चाहती है दुनिया में
सच्चा लोकतन्त्र

चवालीस

कुछ जी रहे हैं पीकर
कुछ बग़ैर पिए।

कुछ मर गए पीकर
कुछ बगैर पिए।

पैंतालीस

नहीं पीने में जो मज़ा है
वह पीने में नहीं
यह जाना हमने पीकर।

छियालीस

इन्तज़ार में ही
पी गए चार प्याले

तुम आ जाते
तो क्या होता?

सैंतालीस

तुम नहीं आए
मैं डूब रहा हूँ शराब में

तुम आ गए तो
शराब में रोशनी आ गई।

अड़तालीस

तुम कहाँ हो
मैं शराब पीता हूँ

तुम आ जाओ
मैं शराब पीता हूँ।

उनचास

तुम्हारे आने पर
मुझे बताया गया प्रेमी

तुम्हारे जाने के बाद
मुझे शराबी कहा गया।

पचास

देवताओ, जाओ
मुझे शराब पीने दो

अप्सराओ, जाओ
मुझे करने दो प्रेम।