http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A4%95&feed=atom&action=historyशर्त / राकेश पाठक - अवतरण इतिहास2024-03-29T00:31:52Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A4%95&diff=237496&oldid=prevAnupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2017-10-14T10:44:29Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
क्यूँ पूछते हो इतना अटपटा सा<br />
सवाल मुझसे ???<br />
क्यूँ बार-बार रख देते हो<br />
एक नयी शर्त ?<br />
मेरे तुम्हारे हमारे बीच<br />
रिश्तों की एक नदी भी बहती है ?<br />
पर<br />
हर बार एक नयी जिद्द ???<br />
क्या यह रिश्तों की तल्खी से उपजा<br />
कोई रिसता हुआ मवाद तो नहीं ???<br />
तेरे यह सवाल ?<br />
तेरे यह शर्त ?<br />
और वह जिद्द भी ?<br />
बौराया हुआ "मान" कब का ढ़ल चूका<br />
और थोपी गयी पूर्वजों की प्रतिष्ठा भी<br />
वजूद की धमनियों में<br />
प्रायश्चित का कोई रक्त संचार नहीं दौड़ता कभी ?<br />
जो हर बार आँखे उलीच<br />
दिखा देते हो अपना वहशीपना !<br />
इतनी कमजोर भी नहीं मैं<br />
कि टूट जाउंगी<br />
और छोड़ दूंगी तुझे<br />
लीलावती की अरण्य में अकेला<br />
अपनी मनमर्जी के लिए<br />
हर शाम के साथ औंध जाती हूँ मैं<br />
और सुलग उठता है मेरा वजूद<br />
तन मन से आग का भभूका फुट पड़ता<br />
मेरे अन्दर रोज ही<br />
नारी की शौर्य की परीक्षा में<br />
पराक्रम का रौरव जब दिखेगा न !<br />
समूल सर्वनाश कर देगा तेरा<br />
और चूर हो जायेगा तेरा वह दर्प<br />
जिसे अपनी पूंजी मान<br />
उगाही करते रहे हो अब तक !!<br />
</poem></div>Anupama Pathak