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शहद हुए एक बूँद हम / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

हित साधन
सिद्ध मक्खियाँ
आसपास घूमन लगीं
परजीवी चतुर चीटियाँ
मुख अपना चूमने लगीं
दर्द नहीे हो पाया कम
शहद हुए एक बूँद हम

मतलब के
मीत सब हमें
ईश्वर-सा पूजते रहे
कानो में
शब्द और स्वर
श्लाघा के कूजते रहे
मुस्काती ऑंख रही नम
शहद हुए एक बूँद हम

सब कुछ भी जान बूझकर
बाँट रहे सिर्फ प्यार को
बाती से दीप में जले
मेट रहे अन्धकार को
सूरज-सा पीते हैं तम
शहद हुए एक बूँद हम