भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर आदिल है तो मुंसिफ़ की ज़रूरत कैसी / संजय मिश्रा 'शौक'

Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:42, 16 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=संजय मिश्रा शौक संग्रह= …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                  रचनाकार=संजय  मिश्रा शौक   
                  संग्रह=
                  }}
                  साँचा:KKCatgazal


शहर आदिल है तो मुंसिफ की जरूरत कैसी
कोई मुजरिम ही नहीं है तो अदालत कैसी

काम के बोझ से रहते हैं परीशां हर वक्त
आज के दौर के बच्चों में शरारत कैसी

हमको हिर-फिर के तो रहना है इसी धरती पर
हम अगर शहर बदलते हैं तो हिजरत कैसी

मैंने भी जिसके लिए खुद को गंवाया बरसों
वो मुझे ढूँढने आ जाए तो हैरत कैसी

जिसमें मजदूर को दो वक़्त की रोटी न मिले
वो हुकूमत भी अगर है तो हुकूमत कैसी

____________________________