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शहर के ऐशगाहों में टँगे दुख गाँव वालों के / डी. एम. मिश्र

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शहर के ऐशगाहों में टँगे दुख गाँव वालों के
ग़ज़ब हैं जो अँधेरे में रचें नक्शे उजालों के।

हमारे गाँव में खींची गयी रेखा ग़रीबी की
फिरे दिन इस बहाने हुक्मरानों के, दलालों के।

तुम्हारी फ़ाइलों मे दर्ज क्या है वो तुम्हीं जानो
लगे हैं ढेर मलवे के यहाँ टूटे सवालों के।

हुँआने का है क्या मतलब हमें मालूम है इतना
मरेंगे लोग तब ही दिन फिरेंगे गिद्ध-स्यालों के।

ग़रीबी की नुमाइश के लिए तम्बू विकासों के
हमारे बाग़ में गाड़े गये ऊँचे ख़यालों के।