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शहर के बच्चे जो रोते नहीं हैं / मनोज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
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शहर के बच्चे जो रोते नहीं हैं
और क्या हो सकता है
इससे बड़ा अपशकुन
आगंतुक संस्कृति के लिए
कि शहर के बच्चे रोने से
बाज आ चुके हैं?
ज़रुरत नहीं है
इस खुले सच की पड़ताल करने
या,शोध-अनुसंधान करने की
--कि किसी अभिशाप के चलते
उनकी आंखों का पानी
रंग-बिरंगे नगों में तब्दील हो गया है.