Last modified on 9 सितम्बर 2017, at 14:48

शहर छोड़ते हुए (कविता) / रामनरेश पाठक

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:48, 9 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह=शह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह शहर
एक लम्बे अरसे से मेरा घर

जब छोड़ रहा हूँ तो
मैं उतना ही उदास हूँ जितना
नैहर छोडती हुई कोई लड़की
उदास हो जाती है

या कोई परदेशी गाँव छोड़ते हुए
अपनी उदासी के समंदर में डूब जाता है

या सोते-सूखने वाले झरने
या पति को विदा देने वाली कुलवधू
या फसल कटे खेत और सूनी चौपाल

बिजली के गुल हो जाने पर शहर
यज्ञ समाप्ति के बाद वेदी
तांत्रिक के न होने पर भैरवी
विसर्जन के बाद मूर्तिपीठ।