http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A4%B0_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%96_/_%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%B5_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&feed=atom&action=historyशहर में भूख / गौरव पाण्डेय - अवतरण इतिहास2024-03-28T08:56:22Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A4%B0_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%96_/_%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%B5_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&diff=234937&oldid=prevSharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौरव पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2017-07-28T09:28:25Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौरव पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=गौरव पाण्डेय<br />
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|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
साधारण सी बात को<br />
पिता बड़े गूढ़ तरीके से कहते<br />
"बेटा!! इस देश में लोग भूखे मरते हैं<br />
और कवि भी"<br />
हम हँसते-वे नाराज़ होते।<br />
<br />
गाँव में खेत थे हमारे<br />
बाग थी, बाग़ में पुश्तैनी आम-जामुन<br />
कुआँ-तलाब लबालब<br />
परिवार-पड़ोसी सब<br />
भला कैसे समझ में आती पिता की बात तब!<br />
<br />
अब शहर में<br />
कुछ अधिक ही लगती है भूख<br />
गला कुछ ज्यादा ही सूखता है<br />
हमें याद आते हैं खेत<br />
परिवार-पड़ोसी याद आते हैं<br />
मन हिरनों-सा भागता है गाँव की ओर...<br />
<br />
पर अब कहाँ <br />
हमारा वो पहले वाला गाँव<br />
परिवार-पडोसी-बाग़-बगइचा-छाँव.!<br />
<br />
फिर भी पाठकों.!<br />
गाँव में पिता हैं, माँ है हमारी<br />
<br />
जहाँ पिता हैं वहाँ भटकना नहीं है<br />
जहाँ माँ है वहाँ भूख नहीं है!<br />
</poem></div>Sharda suman