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शहीदों की चिताओं पर / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’

उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा ।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा ।।

चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को ।
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा ।।

ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल ।
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा ।।

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़ ।
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा ।।

वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है ।
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा ।।

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा ।।

कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे ।
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा ।।

रचनाकाल : 1916