शादमानी<ref>ख़ुशी</ref> में कभी दर्द में ढलते हुए रंग
हमने देखे हैं ज़माने के बदलते हुए रंग
दर्द की एक भी तस्वीर नहीं बन पाई
दिल में यूं तो लिए फिरता हूं मैं जलते हुए रंग
हद से बढ़ जायें तो तस्वीर को खा जाते हैं
सफ़ह-ए-दहर<ref>काल,समय के पन्ने</ref>पे सौ नाज़ से चलते हुए रंग
कौन समझे भला इन ज़ीस्त<ref>जीवन</ref>की तस्वीरों को
एक इक पल में हैं सौ रंग बदलते हुए रंग
दिल के काग़ज़ को बचा लो ऐ ज़माने वालो
ले के आता है कोई आग उगलते हुए रंग
ज़िक्र-ए-“ज़ाहिद’’<ref>जाहिद की</ref> का बुरा हो कि दिखाये उस ने
हम को उस शोख़ के चेहरे के बदलते हुए रंग
शब्दार्थ
<references/>