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शादी में ख़त में जो ख़ला याद आ गया / दिलावर 'फ़िगार'

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शादी में ख़त में जो ख़ला याद आ गया
बिल्कुल ग़लत लिखा था पता याद आ गया

जूते के इंतिख़ाब को मस्जिद में जब गए
वो जूतियाँ पडीं के ख़ुदा याद आ गया

उस शोख़ के वलीमे में खा कर चिकन पुलाव
कनकी के चावलों का मज़ा याद आ गया

मतला पढ़ा जो उस ने रजिस्टर निकाल कर
पूरा तिलिस्म होश-रूबा याद आ गया

हम भी कभी वज़ीर थे काहे के थे वज़ीर
हम थे वज़ीर-ए-आब-ओ-हवा याद आ गया

सोचा था आदमी का क़सीदा लिखेंगे हम
मतला कहा ही था के गधा याद आ गया