Last modified on 24 अगस्त 2009, at 18:03

शाम / नचिकेता

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:03, 24 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


टूट गिरा पत्ते-सा दिन


धुआँ पहनने लगीं दिशाएँ

दीवालों के दाएं-बाएं

किरणों की नाजुक टहनी पर

झूल रहा छत्ते-सा दिन


गीली चिड़िया की पाँखों से

चूने लगा समय आँखों से

सूख रहा छत की मुँडेर पर

यह कपड़े-लत्ते-सा दिन


नाखूनों से तेज़ हवा के

मुँह पर कई खरोंच लगा के

कालचक्र पर मढ़ी जिल्द से

उघर रहा गत्ते-सा दिन