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शाम / सज्जाद बाक़र रिज़वी

दिन को उस का लहू था अर्ज़ां
फिर ये आई ये शाम-ए-ग़रीबाँ
तौक़ गले में पाँव ब-जूलाँ
सब्र है गिर्यां ज़ुल्म है ख़ंदाँ
शाम हुई
कर्ब ओ बला सन्नाटा हर-सू
हर-सू उस के लहू की ख़ुश्बू
मेरे लफ़्ज और उस के जादू
शाम हुई