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"शारदे लेखनी में समा जाइए / संदीप ‘सरस’" के अवतरणों में अंतर

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शारदे   लेखनी में समा जाइए,  
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शारदे लेखनी में समा जाइए,  
मेरे गीतों की गरिमा सँवर जायेगी।
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मेरे गीतों की गरिमा सँवर जायेगी।  
  
प्रेरणा आप हो अर्चना आप हो ,
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प्रेरणा आप हो अर्चना आप हो,  
मेरे मन से जुड़ी भावना आप हो।
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मेरे मन से जुड़ी भावना आप हो।  
  
काव्य की सर्जना स्नेह है आपका,
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काव्य की सर्जना स्नेह है आपका,  
मेरे हर शब्द की साधना आप हो।
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हाथ रख दो मेरे शीश पर स्नेह से,
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हाथ रख दो मेरे शीश पर स्नेह से,  
काव्य प्रतिभा हमारी निखर जायेगी।
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काव्य प्रतिभा हमारी निखर जायेगी।  
  
सारगर्भित रहे मुक्तकों सा सदा ,
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और जीवन बने सन्तुलित छंद सा।
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पारदर्शी   रहे   गीत   की   भावना ,
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पारदर्शी रहे गीत की भावना,  
हो सृजन सर्वदा शुद्ध आनन्द सा।
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हो सर्जन सर्वदा शुद्ध आनन्द सा।  
  
ज्ञान की वर्तिका प्रज्वलित कीजिए,
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ज्ञान की वर्तिका प्रज्वलित कीजिए,  
मेरे जीवन में आभा बिखर जायेगी।
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मेरे जीवन में आभा बिखर जायेगी।  
  
मेरी अनुभूतियों को गहन कीजिए,
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मेरी अनुभूतियों को गहन कीजिए,  
भावनाओं को अभिव्यक्ति दे पाऊं माँ।
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भाव   ऐसे   हृदय में जगा दीजिए
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भाव ऐसे हृदय में जगा दीजिए
कल्पना को सहज शक्ति दे पाऊं माँ।
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कल्पना को सहज शक्ति दे पाऊँ माँ।  
  
लेखनी को हमारी मुखर कीजिए,
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लेखनी को हमारी मुखर कीजिए,  
शब्द की साधना भी सुधर जायेगी।
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शब्द की साधना भी सुधर जायेगी।  
 
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12:57, 18 अगस्त 2019 के समय का अवतरण

शारदे लेखनी में समा जाइए,
मेरे गीतों की गरिमा सँवर जायेगी।

प्रेरणा आप हो अर्चना आप हो,
मेरे मन से जुड़ी भावना आप हो।

काव्य की सर्जना स्नेह है आपका,
मेरे हर शब्द की साधना आप हो।

हाथ रख दो मेरे शीश पर स्नेह से,
काव्य प्रतिभा हमारी निखर जायेगी।

सारगर्भित रहे मुक्तकों-सा सदा,
और जीवन बने सन्तुलित छंद सा।

पारदर्शी रहे गीत की भावना,
हो सर्जन सर्वदा शुद्ध आनन्द सा।

ज्ञान की वर्तिका प्रज्वलित कीजिए,
मेरे जीवन में आभा बिखर जायेगी।

मेरी अनुभूतियों को गहन कीजिए,
भावनाओं को अभिव्यक्ति दे पाऊँ माँ।

भाव ऐसे हृदय में जगा दीजिए
कल्पना को सहज शक्ति दे पाऊँ माँ।

लेखनी को हमारी मुखर कीजिए,
शब्द की साधना भी सुधर जायेगी।