Last modified on 7 सितम्बर 2020, at 14:54

शार्दूला के दोहे / शार्दुला नोगजा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:54, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

थोड़ा मन में चैन जो, तुझ को रहा उधार
तेरी भेजी लकड़ियाँ, मुझको हैं पतवार।

आधी-आधी तोड़ कर, बाँटी रोटी रोज़
पानी में भीगा चूल्हा, जाने किसका दोष।

परचम ना फहराइए, खुद को समझ महान
औरों के भी एब पे, थोड़ी चादर तान।

कम ज़्यादा का ये गणित, विधि का लिखा विधान
तू मुझको दे पा रहा, अपनी किस्मत जान।

और अंत में दोस्तों, तिनका-तिनका जोड़
औरों का मरहम बनें, यही दर्द का तोड़।