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शाहीन में बदल / नीना कुमार

किरदार ही ना रह, सामाईन में बदल
ज़मीन छोड़ कर, शाहीन में बदल

क़ैद खेल में तू है, तस्वीर पे कर नज़र
खिलाड़ी नहीं यूँ रह अब गवाह में बदल

धुंधली क्यों हो रही शराबी तेरी नज़र
जाम को बदल, या खुदको साकी में बदल

कुर्रा-ए-अर्ज़ की शख्सियत देखनी है गर
चाँद में बदल जा, सितारों में बदल

इन्तेहाई तकलीफ से गर तू रहा है गुज़र
हाकिम में बदल या फिर दवा में बदल

ज़लज़ले के होंगे क्या क़ायनात में असर
वक़्त बन या ख़ाक, क़ायनात में बदल
 
चला जायगा यूँ ही ख़त्म होगी न रहगुज़र
रास्ते बदल या खुद मक़ाम में बदल

न शमा बुझने, ना प्यास ख़त्म होने का डर
दश्त राह पर तू खुद को सराब में बदल

रेगाँ हो रहा है इधर ख़ाक का मंज़र
'नीना' नए नज़रिए को नज़ारों में बदल