Last modified on 1 अप्रैल 2020, at 20:12

शिकायत / प्रदीप कुमार

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:12, 1 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जो छिपा लेती थी
अपनी हंसी
किताबों के पीछे
कि कहीं कोइ फिर शिकायत न कर दें।
कभी बारिशों में
गुनगुनाती ग़ज़ल।सी
दबा लेती अपने अल्फाज़ों को अक्सर
कहीं कोई जैसे फिर आह न भर दें
वो ज़िदगी की किताब के पन्ने पलटती
वो बहती नदी में घिरी एक कश्ती
जिसके किनारे कभी नहीं मिलते।
मधुर गीत।संगीत रचती हमेशा
ख्वा़बोें को फिर जो मकरंद कर दें
जो छिपा लेती थी
अपनी हंसी
किताबों के पीछे
कहीं कोइ फिर शिकायत न कर दें।