Last modified on 30 मार्च 2015, at 14:19

शिखण्डिनी का प्रतिशोध-2 / राजेश्वर वशिष्ठ

आसमान में छाए हैं घने बादल
कहीं ऐरावत के शीश पर सिर रख कर
रो रहा होगा चाँद
स्मृतियाँ तैर रहीं हैं भीष्म के मन में
जैसे समुद्र में तैरता है
कोई तूफ़ान में नष्ट हुआ जहाज़
बहुत लम्बी होगी
जीवन की यह अन्तिम-यात्रा !

भीष्म के कान सुनते हैं
अपने आसपास हंसों की चहल-कदमी,
ये ऋषिगण हैं जिन्हें भेजा है माँ गंगा ने
इस रूप में
अपने धर्म स्वरूप पुत्र की
प्रदक्षिणा करने के लिए
हिमालय पुत्री गंगा
अब धरती पर लौट नहीं सकती
अपने पुत्र का सिर स्पर्श करने के लिए !

भीष्म की बन्द पलकों में
झाँकती है माँ गंगे
अब भी वे उसी तरह पकड़े हैं माँ का आँचल
जैसे कभी उन्हें सौंपा था
स्वर्ग लौटती गंगा ने महाराज शान्तनु को !

वह सोचते हैं
काश, इन क्षणों में
माँ, तुम होती मेरे पास
मैं खोलता हृदय की एक-एक गाँठ
मृत्यु का क्या है, पिता के वरदान से
वह तो सदा ही मेरे अधीन है
मुझे तो उसकी प्रतीक्षा करनी ही होगी
सूर्य के उत्तरायण में आने तक !

माँ, धर्म स्वरूप भीष्म ने भी
कई बार किया धर्म का तिरस्कार
उसे देनी चाही नई परिभाषा
पर माँ, वह तो मेरा अहम् था
उससे कैसे पारिभाषित होता धर्म ?

माँ सत्यवती की प्रसन्नता के लिए
भाई विचित्रवीर्य के गृहस्थ के लिए
मैंने किया काशी नरेश की तीन पुत्रियों का
स्वयंवर से अपहरण
अपने राजमद में चूर होकर
क्या यह न्यायोचित था ?

मंत्रियों ने और ब्राह्मणों ने यह कह कर
सदा की तरह ही बोला था
एक ऐतिहासिक झूठ
कि भीष्म तुम तो धर्म के अवतार हो
अधर्म कर ही नहीं सकते !

रथ में बैठी हुई
अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका
की आँखों में छलक रहा था
भय और अपमान का सागर
वे नहीं जानती थीं
कि मैं उन्हें सौंपना चाहता हूँ
एक ऐसे पुरुष को
जिसमें अपना निज पौरुष है ही नहीं,
पौरुष होता तो वह स्वयं
उपस्थित हो सकता था स्वयंवर में !

मैं शाल्व आदि समस्त राजाओं को पराजित कर
आख़िर क्यों उठा लाया था
काशीराज की तीन कन्याओं को,
माँ, तब क्यों नहीं उद्वेलित हुआ धर्म
क्यों नहीं देवताओं ने पकड़ा भीष्म का हाथ
जब ब्रह्मचारी होकर भी
वह कर रहा था
इन कन्याओं का अपहरण ?

माँ, मृत्यु सभी को आती है
किसी न किसी कारण के साथ
मृत्युजित भीष्म के लिए भी
यह अपवाद नहीं है;
भीष्म मृत्युपर्यन्त दोषी रहेगा
अम्बा के अनुचित अपहरण का
जिसने नहीं किया स्वीकार विचित्रवीर्य को
कैसे भूलूँ
समय के इस दुखद काल क्रम को !

अतीत की स्मृतियों की
गहरी परछाईयों में खो गए हैं भीष्म
उन्हें रह-रह कर याद आ रही है
एक बार-बार घायल होती
स्त्री की कहानी
इतिहास जिसे अम्बा,
शिखण्डिनी या शिखण्डी के नाम से जानता है !

आओ सुनते हैं
अम्बा की यह अद्भुत कहानी !