Changes

शितलहरी / रामदेव भावुक

3 bytes removed, 21:12, 7 जून 2016
|रचनाकार=रामदेव भावुक
|अनुवादक=
|संग्रह=रहंस हंस के जीभ तरासल छै / रामदेव भावुक
}}
{{KKCatAngikaRachna}}
ओकरे आगू भरल पूस में, धूप ले मैयो तरसै छें
एक ते’ तेॅ देह पर बस्तर नै छौ
दोसर बैठल छॅ बहरी में
एक चद्दर तर केना के अँटतौ, कुल के मन मे अखरल छौ
ई घ’र ते’ तेॅ बुरबे करतौ
हे गे माय दसहरी मे
लाल चुनरी लहरैबे करतौ, पुरबैया लगै छै बाम होतौ
पछिया ते’ तेॅ पछतैबे करतौ, दुनिया में बदनाम होतौ
ऐ कुहेस के मुरछा लगतौ
मैयो भरल कचहरी मे
</poem>