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शिनाख़्त / शशिप्रकाश

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धरती चाक की तरह घूमती है.
ज़िन्दगी को प्याले की तरह
गढ़ता है समय ।
धूप में सुखाता है ।
दुख को पीते हैं हम
चुपचाप ।

शोरगुल में मौज-मस्ती का जाम ।
प्याला छलकता है ।
कुछ दुख और कुछ सुख
आत्मा का सफ़ेद मेज़पोश
भिगो देते हैं ।

कल समय धो डालेगा
सूखे हुए धब्बों को
कुछ हल्के निशान
फिर भी बचे रहेंगे ।

स्मृतियाँ
अद्भुत ढँग से
हमें आने वाली दुनिया तक
लेकर जाएँगी ।

सब-कुछ दुहराया जाएगा फिर से
पर हूबहू
वैसे ही नहीं ।