भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिमला में बारिश / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:56, 31 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक
बादल
बिन खटखटाए
घुस आते भीतर
बैठक,रसोई,बेडरूम तक
चुपचाप
भई कुछ तो शरम करो
जब बादल मेहमान होते हैं घर में
दरवाज़ा खिड़की रोशनदान
कहीं से भी आ घुसते हैं।


दो
इतनी गहरी धुंध
हाथ को हाथ न सूझे
कहाँ छिप गये
गुमनाम प्रेमी।

तीन
बादल तैर रहे पहाड़ियों में
जैसे भर रहे खाली जगह
जिसे न भर सका कोई
या जैसे रुई बिखर-बिखर गई
अनजान धुनिए से।

चार

बादल की किश्तियाँ
खेता है कोई
रोज़-रोज़ पहाड़् धोता है कोई।

पाँच

किसी ने धुखा दिया धूप
बलखाता धुआँ
उठ रहा धीमे-धीमे।


छः

निकल रहे बादल
पसर रहे घाटियों में
धीरे धीरे धीरे
कहाँ बनते कहाँ बिगड़ते
कहाँ खो जाते
कोई न जाने।