Last modified on 24 जनवरी 2011, at 02:39

शिरसि जटाजूटं विभ्रत् कौपीनंघृतवान् / गुमानी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:39, 24 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गुमानी }} {{KKCatKavita}} <poem> शिरसि जटाजूटं विभ्रत् कौपीन…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शिरसि जटाजूटं विभ्रत् कौपीनंघृतवान् ।
भस्माशेषै वपुषिदधानों हरिचयर्रांबरवान् ।।
तृष्णामुक्तः स्वैर बिहारी योगकला विद्वान ।
अलख निरंजन जपता योगी ओन्नमोनारान् ।।