भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिशिर ने पहन लिया / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शिशिर ने पहन लिया वसंत का दुकूल
गंध बन उड़ रहा पराग धूल झूल
काँटे का किरीट धारे बने देवदूत
पीत वसन दमक उठे तिरस्कृत बबूल
अरे! ऋतुराज आ गया।