Last modified on 26 अगस्त 2020, at 03:19

शीर्षकहीन कविताएँ / सपन सारन

         (चुहल)

1.

ओस की बूँद
बारिश की बूँद
से बोली —
 शऽऽऽऽऽऽऽऽ !
हल्ला करने की क्या ज़रुरत
पगली !

2.

छोटी छोटी बातें बैठी हैं
कब बड़ी-बड़ी बातें ख़त्म होंगी
तो हमारा नम्बर आएगा ...

3.

शहर के कुत्ते और सड़कें सिकुड़ते जा रहे हैं
एक दिन शहर सिकुड़ कर
एक लकीर बन जाएगा
और दिल्ली वाले कहेंगे — 'हमारी ज़्यादा लम्बी है'
और आप कहेंगे " भौ भौ "

4.

इन आँखों का
इलाज कराओ, मेरे अज़ीज़ !

ये दो हो कर भी ...
एक ही को देखती हैं।

5.

उस मोड़ से आज फिर गुज़री ...
पुरानी एक सिसकी
अब भी
गुमसुम खड़ी थी ...