शुभ-लाभ और स्वराज के दीपक जलाइए
दिल के भी कामकाज के दीपक जलाइए
इन तेज़ आंधियों में भी बुझने का डर न हो
अपने नए मिज़ाज के दीपक जलाइए
कल के दिये जो देने लगे हैं धुआं बहुत
उनको हटा के आज के दीपक जलाइए
हिन्दु कि मुसलमाँ कि ईसाई हो या कि सिख
मिलजुल के रामराज के दीपक जलाइए
कोई भी रोग रह न सके लाइलाज अब
हर मर्ज के इलाज के दीपक जलाइए