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शूल और फूल / राधेश्याम प्रगल्भ

शूल से एक रोज़ यों बोला सुमन —
"लोग बिसराते न क्यों तेरी चुभन ?
सोच रह-रहकर मुझे होता यही —
उम्र मेरी याद की क्यों चार दिन ?"

शूल चुप से कान में यह कह गया —
"जो मिला गड़कर उसी के रह गया ।
फूल, भोले ही रहे तुम सर्वथा
गन्ध बाँटी और बिखरे ही सदा ।
जो बिखरते हैं,
उन्हें सब भूल जाते हैं,
और, जो चुभते-कसकते
याद आते हैं ।"