Last modified on 21 मार्च 2012, at 20:30

शेर-7 / असर लखनवी

(1)
जबीने1-सिज्दा में कौनेन2 की वुसअत3 समा जाए,
अगर आजाद हो कैदे - खुदी4 से बंदगी5 अपनी।
 
(2)
जिन खयालात से हो जाती है वहशत6 दूनी,
कुछ उन्हीं से दिले - दीवाना बहलते देखा।

(3)
जिन्दगी वक्फा7 है तेरे हिज्र8 का,
मौत तेरे वस्ल का पैगाम है।

(4)
जुल्फें बिखरी हुई हैं आरिज9 पर,
बदलियों में चराग जलता है।
 
(5)
जो दर्द से वाकिफ हैं वह खूब समझते है,
राहत में तुझे खोया, तकलीफ में पाया है।

1.जबीन - माथा, ललाट, भाल 2.कौनेन - दोनों संसार, यह संसार और ऊपरी संसार (यानी परलोक) 3.वुसअत - लंबाई-चौड़ाई,विशालता 4.खुदी - अहंकार, अहंभाव, यह भाव कि बस हमीं हम है, अभिमान, घमंड, गर्व 5.बंदगी- इबादत, पूजा 6.वहशत - पागलपन 7.वक्फा – (i) दो कामों के बीच में ठहराव का समय, विराम, इंटरभल (ii) विलंब, ठहराव 8. हिज्र - वियोग, विरह, जुदाई, फिराक 9.आरिज - गाल, कपोल