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शैरन के मौ भरे-भरे हैं / महेश कटारे सुगम
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शैरन के मौ भरे-भरे हैं
गाँव उतई के उतई डरे हैं
सड़कन खौं सरपंची खा गई
गैलन में घूरे पसरे हैं
कुआ बावरी के मौ सूखे
हैण्डपम्प टूटे बिगरे हैं
ऊ चुनाव के झगड़ा झाँसे
घर-घर में लोटे पसरे हैं
तीन साल सें फसल बिगर रई
सबके मौ उतरे-उतरे हैं
बोझ क़र्ज़ कौ भारी हो गऔ
सुगम सबई कुकरे-कुकरे हैं